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'तत्सम-तद्भव' शब्दों पर विशेष प्रश्नोत्तरी भाग (2)

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हिंदी वर्ण विश्लेषण पर आधारित प्रश्नोत्तरी भाग -2

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हिंदी के संख्यावाचक शब्दों की एकरूपता/numeric word

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 हिंदी प्रदेशों में संख्यावाचक शब्दों के उच्चारण और लेखन में प्रायः एकरूपता का अभाव दिखाई देता है। इसीलिए एक से सौ तक सभी संख्यावाचक शब्दों पर विचार करने के बाद इनका जो मानक रूप स्वीकृत हुआ, वह इस प्रकार है - संख्यावाचक शब्द 

हिंदी वर्णों के विश्लेषण पर आधारित प्रश्नोत्तरी

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हिंदी के संख्यावाचक शब्दों पर प्रश्नोत्तरी।

व्यंजन संधि संबंधी कुछ नियम।

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1. यदि 'स्' व्यंजन से पहले (अ / आ से भिन्न) कोई भी स्वर आए तो 'स्'; 'ष' में बदल जाता है। जैसे- अभि + सेक = अभिषेक  अभि + सिक्त = अभिषिक्त सु + समा= सुषमा सु + सुप्ति = सुषुप्ति  नि + सेध = निषेध  नि + सिद्ध = निषिद्ध अनु + संगी= अनुषंगी  अपवाद-   अनु + सरण = अनुसरण वि + स्मरण = विस्मरण अनु + स्वार अनुस्वार   2. यदि 'ऋ', 'र', 'ष' व्यंजन के बाद 'न' व्यंजन आए तो उसका 'ण' हो जाता है। भले ही दोनों व्यंजनों के बीच 'क' वर्ग, 'प' वर्ग, अनुस्वार, 'य', 'व', 'ह' आदि में कोई भी एक वर्ण क्यों न आए। जैसे -  ऋ + न = ऋण प्र + मान = प्रमाण शोष् + अन = शोषण  भर + न =भरण विष् + नु = विष्णु किम् + तु = किंतु पूर् + न = पूर्ण परि + मान = परिमाण परि + नाम = परिणाम तृष् + ना = = तृष्णा कृष् + न = कृष्ण भूष्+अन = भूषण  हर + न = हरण  3. यदि 'न्' के बाद 'ल' आए तो 'न' का अनुनासिक के साथ 'ल' हो जाता है। जैसे - (न्+ ल = ल) महान् + लाभ = महाँल्लाभ  4. यदि 'त' व्यंजन के बाद

हिंदी वर्णमाला पर प्रश्नोत्तरी

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वाक्य संबंधी अशुद्धियाँ/sentence errors

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वाक्य संबंधी अशुद्धियाँ -  मनुष्य अपने भाव एवं विचारों को प्रकट करने के लिए शब्दों का सहारा लेता है। शब्दों को एक क्रम में रखकर अर्थ की दृष्टि से सही और स्पष्ट प्रयोग हम वाक्य के माध्यम से प्रकट करते हैं। वाक्य के दो (अवयव) हैं- उद्देश्य और विधेय।  जिस वस्तु के विषय में कुछ कहा जाता है, वह उद्देश्य तथा उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे सूचित करने वाले शब्दों को विधेय कहते हैं | वाक्य निर्माण के नियम बने हुए हैं, परंतु उनके अध्ययन के अभाव में हम अनेक प्रकार से अशुद्धियाँ, त्रुटियाँ करते चले जाते हैं, जिनका भाव स्वयं लिखने वाले को भी नहीं होता। इन अशुद्धियों में हैं- संज्ञा संबंधी, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, लिंग, वचन, कारक (परसर्ग) के प्रयोग, अव्यय, पदक्रम, द्विरुक्ति, पुनरुक्ति, अधिक पदत्व, विराम चिह्न आदि के प्रयोग संबंधी त्रुटियाँ। इसके लिए आवश्यक है संपूर्ण व्याकरण का गंभीर अध्ययन। वाक्य संबंधी अशुद्धियों के कतिपय उदाहरण हैं - व्याकरण अध्ययन के अभाव के कारण हम आम तौर पर अपने लेखन में उपर्युक्त अशुद्धियाँ करते हैं। इसके अतिरिक्त व्याकरण के विविध पक्षों, यथा- संज्ञा, सर्वनाम,

देवनागरी लिपि पर प्रश्नोत्तरी

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देवनागरी लिपि पर प्रश्नोत्तरी

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परिवर्धित देवनागरी/Modified Devanagari (diacritic mark)

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             परिवर्धित देवनागरी, देवनागरी वर्णमाला का वह रूप है जिसमें मूल देवनागरी लिपि में कुछ प्रतीक चिह्न (विशेषक चिह्न) जोड़े गए हैं। परिवर्धित चिह्नों को जोड़ने का मूल उद्देश्य यह है कि देवनागरी लिप्यंतरण करते समय अर्थभेदकता की स्थिति में संबंधित भाषा की ध्वनियों का लेखन संभव हो सके।               देवनागरी लिपि को भारतीय भाषाओं के लिप्यंतरण का सशक्त माध्यम बनाने के  लिए यह अपेक्षित है कि देवनागरी में अन्य भाषाओं की ध्वनियों के सूचक प्रतीक चिह्नों का विकास किया जाए। अतः विभिन्न भाषाओं के भाषा विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद 'परिवर्धित देवनागरी' का विकास किया गया है, जिसमें दक्षिण भारत की भाषाओं के साथ-साथ कश्मीरी, बांग्ला, मराठी, ओडिआ तथा असमिया भाषाओं के विशिष्ट स्वरों और व्यंजनों के साथ-साथ सिंधी और उर्दू की विशिष्ट ध्वनियों के लिप्यंतरण के लिए देवनागरी में अपेक्षित परिवर्धन किया गया। देवनागरी लिपि में जिन ध्वनियों के लिए कोई चिह्न उपलब्ध नहीं है, अर्थात् जो ध्वनियाँ हिंदी भाषा में स्वनिमिक (Phonemic) स्तर पर विद्यमान नहीं हैं, उनके लिए ही विशेषक चिह्न निर्धा

हिंदी में विसर्ग से संबंधित विश्लेषण

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   विसर्गों की न बिसरने वाली बात - घृणासूचक अव्यय "छि" को कुछ लोग विसर्ग के साथ "छि:" लिख रहे हैं जो अशुद्ध प्रयोग है। हिंदी में विसर्ग केवल कुछ तत्सम शब्दों के साथ ही लिखे जाते हैं, जैसे:प्रातः, प्रायः।  छि: विसर्ग नहीं है। जब हम विसर्गों का उच्चारण ही नहीं करते, तो लिखा क्यों जाता है? अर्थात हमें ऐसी चूक से बचना होगा। छि!... दुहरा डरावना प्रयोग "छि:-छि:" भी प्रायः लिखा मिलता है जो "छिच्छी" बोला जाता है।अधिकांश इकारांत शब्द हिंदी में संस्कृत से आए हैं ।उच्चारण में प्रायः दीर्घ हो जाते हैं और /ई/ से बोले जाते हैं। सो "छिच्छी" से हम चाहे नाक मुँह बिदकाएँ पर विसर्गों का प्रयोग करने से नहीं चूकते। हिंदी में दुखद सही /दु:खुद - हिंदी में दुःख (तत्सम) का तद्भव "दुख" रह गया है, इसलिए दुखद। तथा परंपरा से दुःख अशुद्ध नहीं, इसलिए संस्कृत में दुःखद ठीक होगा। आभार आप सभी का हिंदी से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो कमेंट में जरूर लिख दें मैं उसका जवाब दे दूंगा।

व्यावहारिक हिंदी में वर्तनीगत होने वाली अशुद्धियां

  वर्तनी संबंधी अशुद्धियां वर्तनी संबंधी अशुद्धियां आमतौर पर यह देखा गया है कि वर्तनी संबंधित अशुद्धियां सर्वांधिक होती है यह जाने और अनजाने दोनों तरह से हो जाती हैं। हिंदी में प्रवेश लेने से पूर्व सर्वप्रथम भाषा और व्याकरण का अध्ययन आवश्यक है। यह दोष अक्षम्य होता है। इससे अर्थ भी भिन्न निकलता है। इससे व्यक्ति की अक्षमता के साथ उसके बौद्धिक स्तर का पता चलता है। वर्तनी संबंधी अशुद्धि से उच्चारण दोष भी स्वतः ही आ जाता है। इसके लिए हमें शब्दकोश तथा व्याकरण का अध्ययन निरंतर करते रहना चाहिए । भाषा का सतत अध्ययन करने एवं शब्दकोश को निरंतर देखते रहना चाहिये। आलस्य भाव कभी अपने ऊपर हावी न होने देना चाहिए। कुछ ऐसे शब्द जो रोजमर्रा के जीवन में प्रयुक्त हैं और उनमें भयंकर त्रुटियाँ देखने को मिलती है। उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन के समय मूल्यांकनकर्ता को जब इस तरह की गलतियाँ दिखाई पड़ती है तब उसकी कलम करवाल (तलवार) का रूप अख्तियार कर लेती है। अतः ध्यातव्य है कि भाषा तथा व्याकरण के अध्ययन की सदैव दरकार समझे। कुछ शब्द तथा उनका मानक (सही) स्वरूप दिया जा रहा है अशुद्ध

मानवतावादी संदेश/humanitarian message.

मैं तुम्हें सागरमाथा की ऊँचाई देता हूँ। तुम मुझे महासागर की गहराई दो । मैं गर्वोन्नत स्वाभिमानी जागरूक सिर देता हूँ तुम प्रेमोन्मत्त भाव भीना गंभीर हृदय दो. मैं तुम्हें अपना बुद्ध देता हूँ तुम मुझे शान्ति और अनाक्रमण दो ।                         धन्यवाद 

समास संबंधित होने वाली कुछ विशेष त्रुटियां/

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  सम (अच्छी तरह परस्पर) + आस (बैठाना) समास कहलाता है।  अत: दो या दो से अधिक शब्दों, पदों, अवयवों का परस्पर मेल समास कहलाता है। सामासिक शब्दों को अलग-अलग करने का नाम विग्रह है। मुख्य रूप से समास के चार रूप है, तत्पुरुष समास के दो भेद हैं। इस प्रकार कुल भेद-प्रभेद छह है। कुछ सामासिक पदों के अशुद्ध विग्रह करने पर दूसरा समास बन जाता है। अतः उनके मानक या प्रामाणिक रूप यहाँ दिए जा रहे हैं

मानक हिंदी वर्णमाला तथा अंक/ standard Hindi alphabets and points

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    वर्ण भाषा की ध्वनियों के उच्चरित तथा लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं। लिपि चिह्न भाषा के लिखित रूप के प्रतीक होते हैं। इस दृष्टि से लिपि-चिह्न वर्ण के अंतर्गत आते हैं। इन वर्गों के क्रमबद्ध समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं। वर्णमाला में सर्वत्र एकरूपता बनाए रखने के लिए हिंदी वर्णमाला तथा अंकों का अद्यतन मानक स्वरूप निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार है :- हिंदी की वर्णमाला-  स्वर -  अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ संस्कृत के लिए प्रयुक्त देवनागरी में ॠ, लृ तथा ॡ भी सम्मिलित हैं, किंतु हिंदी में इनका प्रयोग न होने के कारण इन्हें हिंदी की मानक वर्णमाला में स्थान नहीं दिया गया है। मूल व्यंजन - क ख ग घ ङ  च छ ज झ ञ  ट ठ ड ढ ण    ड़ ढ़  त थ द ध न  प फ ब भ म  य र ल व   श ष स ह  ड़ और ढ़ व्यंजन रूप हिंदी में स्वीकृत ध्वनियाँ हैं। इस तरह हिंदी वर्णमाला में मूलतः 11 स्वर तथा 35 (33 + 2) व्यंजन है संयुक्त व्यंजन- क्ष (क् + ष) त्र (त् + र) ज्ञ (ज् + ञ) श्र (श् + र) अनुस्वार (शिरोबिंदु) -      ऻ     संयम अनुनासिक  (चंद्रबिंदु) -   आँख      विसर्ग   :          प्रातः हल चिह् न       भगवत् आगत वर्ण    

जून शब्द की उत्पत्ति और इसके भेद

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  जून हिंदी का शब्द है।   "शब्दसागर" सं. धुवन से विकसित मानता है। अन्य कोश उल्लेख नहीं करते, सो अज्ञात व्युत्पत्तिक (देशज भी हो सकता है। कुछ अवधी का मानते हैं, पर हिंदी, उर्दू, अन्य बोलियों में भी बहुत प्रयुक्त हुआ है। "जीमन/जीमना" का लाक्षणिक भी हो सकता है, दो वक्त ही 'जीमते'  हैं। राजस्थान में जून शब्द का प्रयोग मानव जून के रूप में मानव जीवन के रूप में मानव योनि के लिए भी करते हैं संदर्भ ग्रंथ - हिंदी शब्द सागर, वृहत् हिंदी शब्दकोश, शिक्षार्थी कोश। इसके बारे में अपना सुझाव जरूर दें।

Suryakant Tripathi Nirala सूर्यकांत त्रिपाठी निरालात

 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (21 फ़रवरी 1896 15 अक्तूबर 1961)   स्नेह-निर्झर बह गया है।  रेत ज्यों तन रह गया है। आम की यह डाल जो सूखी दिखी,  कह रही है, "अब यहाँ पिक या शिखी  नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी  नहीं जिसका अर्थ  जीवन दह गया है।" "दिये हैं मैंने जगत को फूल-फल,  किया है अपनी प्रतिभा से चकित चल;  पर अनश्वर था सकल पल्लवित  पल-ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।" अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,  श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा  बह रही है हृदय पर केवल अमा;  मैं अलक्षित हूँ,  यही कवि कह गया है। धन्यवाद।

हिंदी क्यों और कैसे तथा संधि संबंधी त्रुटियाँ/ Hindi kyon aur kaise sandhi trutiyaan

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  हिंदी क्यों और कैसे ?  भाषा नितांत सामाजिक वस्तु होती है। वह समाज के रंग में रंग कर ही विकसित होती है। आज के उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण के इस दौर में किसी भी भाषा के साहित्यिक रूप के साथ-साथ उसके प्रतियोगितापरक रूपों का विकास भी अनिवार्य है। आज वही व्यक्ति समाज में जीवन यापन कर पाएगा जिसको भाषा के बहुआयामी रूपों की जानकारी है। इसी क्रम में भारत की अधिकृत भाषा हिंदी है, जिसको बोलने, समझने, पढ़ने, लिखने वालों की संख्या लगभग 75 से 80 करोड़ है। इतनी बड़ी संख्या में हिंदी लोगों की जुबान (व्यवहृत भाषा) है। इससे स्वतः ही इसकी उपयोगिता बढ़ जाती है। हिंदी आज राजभाषा, संपर्क भाषा एवं वैश्विक बाजार संचालन की भाषा के रूप में प्रमुखता प्राप्त किए हुए हैं। हिंदी का केवल साहित्यिक रूप ही नहीं बल्कि प्रयोजनपरक रूप भी इस समय सर्वाधिक चर्चित है। इसका (हिंदी) अध्ययन, अध्यापन अब केवल साहित्यिक सेवा के लिए ही नहीं बल्कि आजीविका के लिए भी सामने है। इसके अध्येता अब अनेक क्षेत्रों में अपने भविष्य का निर्धारण कर सकते  हैं। वर्तमान काल का भयावह सच है- बेरोजगारी। वैश्वीकरण और बाजारीकरण के बढ़ते प्रभाव ने रोज

अर्थ, आशय, अभिप्राय, तात्पर्य और भावार्थ

अर्थ, आशय, अभिप्राय, तात्पर्य और भावार्थ ये पाँचों शब्द प्रायः समानार्थी माने जाते हैं। शब्दकोश  भी इनके अर्थ मिलते-जुलते देते हैं किंतु सूक्ष्म रूप से देखें तो इनमें निश्चय ही कुछ अंतर है ।  अर्थ से तात्पर्य सामान्यतः   शब्दार्थ से होता है। आप किसी उक्ति, कथन में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ जानते हैं तो आप उक्ति का सामान्य अर्थ भी जानते हैं। उस अर्थ को बता भी सकते हैं।  आशय आशय और अर्थ में बस इतना ही अंतर है कि शब्दों का अलग-अलग अर्थ जाने बिना भी आप संदर्भ समझते हुए बात का आशय ग्रहण कर लेते हैं। तात्पर्य  इससे कहीं आगे हैं। यह तत्परता का दूसरा रूप है। तत्पर अर्थात उसके बाद आने वाला (तत् परम्)। जब आप किसी बात के गूढ़ अर्थ समझाने लगते हैं, एक के बाद एक उसकी परतें खोलने लगते हैं, तब आप तात्पर्य समझा रहे होते हैं और दूसरा भी तात्पर्य ग्रहण कर रहा होता है। अभिप्राय   इसमें अभि उपसर्ग है और इसका आशय गति करने के निकट है (संस्कृत √इ धातु, अभि और प्र उपसर्ग) अर्थात आप अगले के भावों तक पहुंचते हैं। अपना अभिप्राय स्पष्ट करते हैं तो उसमें आपकी राय, आपकी धारणा भी दूसरे तक पहुंचती है क्योंकि आप अभिप्र

"मास्क है ज़रूरी!" देशकाल के अनुसार शब्द का प्रयोग

 इस सूत्र में चकित होकर देख रहा हूँ कि अपने देश में इस मुखकवच के लिए तो बीसियों शब्द परंपरा से चले आए हैं। इतनी संपन्नता है लोक में ...🤗😭 Covid-19 के आतंक के साथ मास्क का चलन भी व्यापक हो गया। इसे हिंदी में मुखौटा, नकाब; अनुवाद की हिंदी में मुखावरण, मुखच्छद कह सकते हैं। बैल, घोड़े के मुख पर बँधे मास्क के लिए लोक में कुछ शब्द हैं - पू उप्र - जाबा उत्तराखंड - मोल / मोव उप्र - मुच्छीका/मुच्छेक/मोच, खोंच हमारे क्षेत्र में ?? रस्सियों से बनी जाली जैसे आकार के एक उपयोगी उपकरण का नाम छींका/सींका है। -छीकौ केहि बिधि पायौ ~ सूरदास - बिल्ली के भागों छीका टूटना ~ मुहावरा लगता है मुँह छींका ही मुच्छीका/मुछीका/मुसीका बन गया।

उबरना और उभरना में अंतर -

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हिंदी में उबरना और उभरना दोनों स्वतंत्र क्रियाएँ हैं। उबरना to rise above, to lift up किसी संकट या समस्या से मुक्त होना, up छुटकारा पाना, मुक्ति पाना, निजात पाना, बाकी बचना, शेष रहना आदि है। उभरना to emerge, पनपना, बढ़ना, उठना, फैलना, सूजना, फूलना, प्रमुख बनना आदि के अर्थ में।

हिंदी वर्णमाला, सीखें शुद्ध उच्चारण सहित।

 नमस्ते साथियों, इसके माध्यम से आप हिंदी स्वर,व्यंजन, आगत ध्वनि उच्चारण, सामान्यतः स/श/ष में होने वाली अशुद्धियां आदि में सुधार करने में यह लेख सहायक होगा। हिंदी वर्णमाला के बारे में आधारभूत समझ, तथा वर्णों के उच्चारण, लेखन इत्यादि के बारे में असमंजस्य दूर करने हेतु आप मेरे दिए गए लिंक के माध्यम से अपना हिंदी कौशल सुधारने में समर्थ रहेंगे ऐसी मैं कामना करता हूंं। स्वर ज्ञान के लिए इस पर क्लिक करें।    व्यंजन ज्ञान के लिए यहां क्लिक करें।   यदि आपको वाकई हिंदी उच्चारण में यह सहायता करें तो कमेंट करके और पेज फोलो करके जरूर बताएं तथाअपने साथियों को शेयर जरूर करें। धन्यवाद।

देवनागरी लिपि ज्ञान/Devanagari script knowledge

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साथियों! अक्षर हमें यह भ्रम रहता है विशेषकर हिंदी वर्णमाला में देवनागरी लिपि को लेकर उसके वर्ण, शब्दों के प्रयोग हमें असमंजस्य रहता है इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने आपके लिए यह पोस्ट पेज में उपलब्ध करवाई है। हिंदी क्यों और कैसे तथा संधि संबंधी त्रुटियाँ       देवनागरी लिपि का परिचय भाषा के उच्चरित रूप को निर्धारित प्रतीक चिह्नों के माध्यम से लिखित रूप देने का माध्यम ही लिपि है, अर्थात् किसी भाषा के लिखने का ढंग लिपि कहलाता है। दूसरे शब्दों में, लिपि मनुष्य द्वारा अपने भावों, विचारों, अनुभवों आदि को संप्रेषित करने का दृश्य माध्यम है। लिपि के कारण ही सहस्रों वर्ष पूर्व के शिलालेख, ताम्रपत्र हस्तलेख आदि आज भी जीवंत हैं, जो हमें उस काल के इतिहास, वैभव, सभ्यता आदि से परिचित कराते हैं। लिपि मानव समुदाय का एक अद्भुत आविष्कार है। लिपि की उत्पत्ति से पूर्व भावाभिव्यक्ति का दायरा बोलने और सुनने तक ही सीमित था। मनुष्य की यह उत्कट अभिलाषा रही होगी कि उसके ज्ञान-विज्ञान संबंधी भाव और विचार दूर-दूर तक पहुँच सकें और उन्हें भविष्य के लिए संचित किया जा सके। यही इच्छा आगे चलकर मनुष्य के लिए लिपि के आ