अर्थ, आशय, अभिप्राय, तात्पर्य और भावार्थ

अर्थ, आशय, अभिप्राय, तात्पर्य और भावार्थ


ये पाँचों शब्द प्रायः समानार्थी माने जाते हैं। शब्दकोश  भी इनके अर्थ मिलते-जुलते देते हैं किंतु सूक्ष्म रूप से देखें तो इनमें निश्चय ही कुछ अंतर है । 

अर्थ से तात्पर्य सामान्यतः 

शब्दार्थ से होता है। आप किसी उक्ति, कथन में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ जानते हैं तो आप उक्ति का सामान्य अर्थ भी जानते हैं। उस अर्थ को बता भी सकते हैं। 

आशय

आशय और अर्थ में बस इतना ही अंतर है कि शब्दों का अलग-अलग अर्थ जाने बिना भी आप संदर्भ समझते हुए बात का आशय ग्रहण कर लेते हैं।


तात्पर्य 

इससे कहीं आगे हैं। यह तत्परता का दूसरा रूप है। तत्पर अर्थात उसके बाद आने वाला (तत् परम्)। जब आप किसी बात के गूढ़ अर्थ समझाने लगते हैं, एक के बाद एक उसकी परतें खोलने लगते हैं, तब आप तात्पर्य समझा रहे होते हैं और दूसरा भी तात्पर्य ग्रहण कर रहा होता है।

अभिप्राय 

इसमें अभि उपसर्ग है और इसका आशय गति करने के निकट है (संस्कृत √इ धातु, अभि और प्र उपसर्ग) अर्थात आप अगले के भावों तक पहुंचते हैं। अपना अभिप्राय स्पष्ट करते हैं तो उसमें आपकी राय, आपकी धारणा भी दूसरे तक पहुंचती है क्योंकि आप अभिप्राय समझा रहे होते हैं। यह बहुत कुछ अंग्रेजी के इंटेंडेड मीनिंग सा है। (ध्यान रहे कि अंग्रेजी के मोटिफ़ शब्द को भी हिंदी में अभिप्राय कहा गया है।) तात्पर्य का संबंध विषय या वस्तु से होता है लेकिन अभिप्राय प्रायः व्यक्ति का होता है।


भावार्थ 

इन तीनों से थोड़ा हटकर है और थोड़ा तीनों के समान भी। तात्पर्य या अभिप्राय में आपको अपनी बात समझाने के लिए अधिक बातों, वाक्यों का सहारा लेना पड़ सकता है किंतु भाव समझाने में आप संक्षिप्तता का आश्रय लेते हैं। जो कथन या आशय है उसको आप केंद्रीय भाव मानकर समझाते हैं। आप भावार्थ समझा रहे होते हैं और दूसरा भावार्थ ग्रहण कर रहा होता है ।


पुरानी किंतु शास्त्रीय शब्दावली का प्रयोग करें तो कह सकते हैं कि अर्थ और आशय में अभिधा अर्थ देखा जाता है तथा अभिप्राय, तात्पर्य और भावार्थ के लिए हमें लक्षणा और व्यंजना को भी समझना, स्पष्ट करना होता है।

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