परिवर्धित देवनागरी/Modified Devanagari (diacritic mark)

परिवर्धित देवनागरी, देवनागरी लिपि ज्ञान, देवनागरी मानक रूप

  

          परिवर्धित देवनागरी, देवनागरी वर्णमाला का वह रूप है जिसमें मूल देवनागरी लिपि में कुछ प्रतीक चिह्न (विशेषक चिह्न) जोड़े गए हैं। परिवर्धित चिह्नों को जोड़ने का मूल उद्देश्य यह है कि देवनागरी लिप्यंतरण करते समय अर्थभेदकता की स्थिति में संबंधित भाषा की ध्वनियों का लेखन संभव हो सके।

              देवनागरी लिपि को भारतीय भाषाओं के लिप्यंतरण का सशक्त माध्यम बनाने के  लिए यह अपेक्षित है कि देवनागरी में अन्य भाषाओं की ध्वनियों के सूचक प्रतीक चिह्नों का विकास किया जाए। अतः विभिन्न भाषाओं के भाषा विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद 'परिवर्धित देवनागरी' का विकास किया गया है, जिसमें दक्षिण भारत की भाषाओं के साथ-साथ कश्मीरी, बांग्ला, मराठी, ओडिआ तथा असमिया भाषाओं के विशिष्ट स्वरों और व्यंजनों के साथ-साथ सिंधी और उर्दू की विशिष्ट ध्वनियों के लिप्यंतरण के लिए देवनागरी में अपेक्षित परिवर्धन किया गया।

देवनागरी लिपि में जिन ध्वनियों के लिए कोई चिह्न उपलब्ध नहीं है, अर्थात् जो ध्वनियाँ हिंदी भाषा में स्वनिमिक (Phonemic) स्तर पर विद्यमान नहीं हैं, उनके लिए ही विशेषक चिह्न निर्धारित किए गए। उदाहरण के लिए दक्षिण भारतीय भाषाओं एवं कश्मीरी में हस्व 'ए' और 'ओ' उपलब्ध हैं किंतु देवनागरी में वे स्वनिमिक स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं।

अनेक भारतीय भाषाओं की वर्णमाला देवनागरी वर्णमाला के समान है परंतु • भाषा विशेष में कुछ वर्णों का उच्चारण सामान्य हिंदी के उच्चारण से भिन्न है। यह भाषाओं के ध्वन्यात्मक व्यतिरेक (Phonetic Contrast) का विषय है।

परिवर्धित देवनागरी (विशेषक चिह्न) संविधान की अष्टम अनुसूची में परिगणित अन्य भारतीय भाषाओं की विशिष्ट ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए देवनागरी वर्णमाला में जो विशेषक चिह्न (Diacritical Marks) जोड़े गए, उनकी अद्यतन स्थिति की गई हैं।

हालांकि हिंदी भाषा के व्यावहारिक क्षेत्र में ये 'विशेषक चिह्न'  उपयोग में नहीं लिए जाते हैं न हीं बोले जाते हैं फिर भी यदि आप की मांग है कि हमें वह भी उपलब्ध करवाए जाए तो आप मुझे कमेंट में लिख कर भेज दें जिससे कि मैं आपकी भावनाओं के अनुरूप काम करने के लिए उपयुक्त समझूं ।






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