व्यंजन संधि संबंधी कुछ नियम।
अपवाद-अभि + सेक = अभिषेकअभि + सिक्त = अभिषिक्तसु + समा= सुषमासु + सुप्ति = सुषुप्तिनि + सेध = निषेधनि + सिद्ध = निषिद्धअनु + संगी= अनुषंगी
अनु + सरण = अनुसरण
वि + स्मरण = विस्मरण
ऋ + न = ऋणप्र + मान = प्रमाणशोष् + अन = शोषणभर + न =भरणविष् + नु = विष्णुकिम् + तु = किंतुपूर् + न = पूर्णपरि + मान = परिमाणपरि + नाम = परिणामतृष् + ना = = तृष्णाकृष् + न = कृष्णभूष्+अन = भूषणहर + न = हरण
उद् + हार उद्धारउद् + हत = उद्धतउद् + हरण उद्धरणपद् + हति = पद्धति
उद् + लेख =उल्लेखउद् + लास = उल्लासतद् + लीन = तल्लीन
'ल्' घोष ध्वनि के प्रभाव से हल् 'द्' का 'ल' के साथ जुड़ने एवं संधि विकार से 'ल्ल' हो जाता है।
नोट :-
हिंदी में तत्सम शब्दों की व्याकरण उनकी प्रकृति के अनुसार अर्थात संस्कृत व्याकरण पर आधारित है जबकि आगत शब्द जैसे: विदेशी शब्दों का व्याकरणिक परिवर्तन हिंदी में 'हिंदी भाषा व्याकरण' के अनुरूप होता हैं।
जैसे:- 1. राजर्षि = राजन् + ऋषि (संस्कृत व्याकरण) राजन् में न् का लोप होकर राज + ऋषि की संधि होती है
राजार्षि = राजा + ऋषि (हिंदी व्याकरण) अशुद्ध संधि
2. हिंदी में अंग्रेजी शब्द 'पेन' का बहुवचन 'पेन्स' न होकर 'पेनों' होता है जो हिंदी व्याकरण का नियम लागू है अंग्रेजी व्याकरण का नहीं।
हिंदी व्याकरण की व्यंजन संधि में प्रयुक्त उपसर्ग 'उद्' 'तद्' ही शुद्ध रूप है 'उत्' 'तत्' उपसर्ग का हिंदी में कोई अस्तित्व नहीं है अर्थात हमें व्यंजन संधि में संधि या संधि- विच्छेद करते समय 'उत्' 'तत्' उपसर्ग के प्रयोग से बचना चाहिए।
संस्कृत में तत् _ते_तानि 'तद्' के ही रूप हैं । अलग से कोई उपसर्ग या पद नहीं है। जो हिंदी में तत्सम रूप में ज्यों-के-त्यों स्वीकार किए गए हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
सार्थक कमेंट्स करें, आपके कमेंट्स हमारे लिए अमूल्य है।