हिंदी भाषा मानकीकरण एवं शब्दावली निर्माण की प्रक्रिया/ hindi maanakeekaran shabdaavalee nirmaan prakriya

भाषा मानकीकरण की प्रक्रिया  


जिस भाषा-समाज में शब्दावली का विकास स्वाभाविक प्रयोग प्रक्रिया से शुरू न होकर पर्याय निर्माण की प्रक्रिया से शुरू होता है वहाँ कई प्रकार की सामाजिक और भाषागत समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। 

उदाहरणार्थ, भारत में 1951-60 के दशक में शब्दावली संबंधी तीन परस्पर विरोधी विचारधाराएँ उभरकर सामने आई जिन्होंने शब्दावली निर्माण के प्रयासों को तीन विभिन्न दिशाओं की ओर ले जाने का प्रयास किया शब्दावली की शुद्धतावादी धारा के समर्थक हर अंग्रेजी शब्द के लिए हिंदी या संस्कृत के ही शब्द चाहते थे। अंग्रेज़ी का एक भी शब्द उन्हें स्वीकार नहीं था। दूसरी धारा जो संस्कृत शब्दों की विरोधी थी, हिंदुस्तानी या बोलचाल के भाषा रूप का ही प्रयोग करने के पक्ष में थी। इसी काल की एक और विशेषता यह रही कि अनेक उत्साही विद्वानों या संस्थाओं ने समरूपता और समन्वय की परवाह किए बिना शब्द निर्माण की अपनी-अपनी टकसालें खोल दीं। जिसके फलस्वरूप भिन्न-भिन्न राज्यों या क्षेत्रों में अक्सर एक ही शब्द के कई पर्याय विकसित हो गए जो मानक शब्दावली के विकास में बाधक सिद्ध हुए, जैसे :

Director  - निर्देशक, निदेशक, संचालक

Government - सरकार, शासन

Workshop - कार्यशाला कार्यगोष्ठी, कर्मशाला, गोष्ठी,                          संगोष्ठी 

इसलिए यह आवश्यक था कि मनमाने ढंग से शब्दावली बनाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जाए और ठोस भाषा वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर शब्दावली के मानकीकरण की प्रक्रिया शुरू की जाए। फलस्वरूप 1961 में भारत सरकार ने वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग की स्थापना की। भारत में संस्थागत स्तर पर भाषा मानकीकरण की प्रक्रिया की यह शुरूआत थी। आयोग ने अपनी कार्यप्रणाली में बहुत ही संतुलित दृष्टिकोण अपनाया तथा सभी भारतीय भाषाओं एवं प्रमुख विषयों के विद्वानों, वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों तथा भाषाविदों से परामर्श कर सर्वसम्मति से सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली के निर्माण और विकास के लिए कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए (जिन्हें वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग द्वारा स्वीकृत शब्दावली निर्माण के सिद्धांत में पढ़ सकते हैं) इनमें चार मूलभूत सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है :-

(क) अंतर्राष्ट्रीय शब्दों को यथासंभव उनके प्रचलित अंग्रेजी रूपों में ही अपनाया जाए और हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की प्रकृति के अनुसार उनका लिप्यंतरण किया जाए। 
(ख) अपनी भाषा के शब्द भंडार में उपलब्ध ऐसे शब्दों को जो अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्द के लिए पहले से प्रचलित हैं, पर्याय के रूप में स्वीकार कर लिए जाएँ।
(ग) आवश्यकतानुसार प्रादेशिक भाषाओं से तकनीकी शब्द ग्रहण किए जाएँ। 
(घ ) नए शब्द संस्कृत धातुओं के आधार पर निर्मित किए जाएँ।

इन सिद्धांतों के पीछे निहित ध्येय यह था कि भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली का ऐसा भंडार तैयार हो जो स्वरूप में यथासंभव अखिल भारतीय हो और प्रयोग में सुकर हो । आयोग इस बात से भली-भाँति परिचित है कि कोई भी शब्दावली मात्र कोडीकरण' या पर्याय निर्धारण के बल पर मानक नहीं बन जाती। इसे एक बार प्रयोग या व्यवहार के दौर से गुजरना पड़ता है। कोडीकरण तो मानकीकरण की प्रक्रिया का पहला चरण है जिसका उद्देश्य रूपों (यहाँ पर्यायों ) की विभिन्नताओं को कम से कम करना और एक अर्थ या संकल्पना के लिए एक रूप ( अर्थात् पर्याय ) निर्धारित करना है। यह एकरूपता लाने का प्रयास है। मानकीकरण प्रक्रिया का दूसरा चरण विस्तारण है जिसमें कोडीकरण के चरण में निर्धारित रूपों तथा पर्यायों को विविध व्यवहार क्षेत्रों और प्रकार्यों में प्रयोग में लाया जाता है। इससे इन रूपों तथा शब्दों का प्रयोग विस्तार बढ़ता है और ये प्रयोगसिद्ध हो जाते हैं। प्रयोगसिद्ध हो जाने पर इन्हें सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो जाती है। इससे न केवल तकनीकी शब्द का बल्कि विभिन्न प्रकार्यों के लिए उपयुक्त तकनीकी शैली और तकनीकी लेखन का रूप भी मानक और स्थिर होता जाता हैं

आयोग ने कोडीकरण चरण का एक बहुत भाग पूरा कर लिया है, हालाँकि नवविकसित ज्ञान शाखाओं और विशेषीकृत विज्ञानों में शब्दावली निर्माण का कार्य समानांतर चल रहा है। फलत: आयोग के प्रयास अब विशेष रूप से दूसरे चरण में केंद्रित हैं, जैसे: मानक शब्दावली के प्रयोग को बढ़ावा देना, प्रयोक्ताओं से संपर्क स्थापित करना और उनमें शब्दावली संबंधी जागरूकता पैदा करना, उनसे फीडबैक प्राप्त करना, शब्दावली का अद्यतनीकरण और संशोधन करना तथा लेखन के माध्यम से तकनीकी शैली का विकास करना आज आयोग द्वारा संचालित अनेक परियोजनाओं में ये उद्देश्य प्रतिबिंबित होते हैं, जैसे: विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के विषय, अध्यापकों के लिए संचालित शब्दावली प्रशिक्षण कार्यशाला, अखिल भारतीय तकनीकी शब्दावली की पहचान, विभिन्न विषयों के परिभाषा कोशों का निर्माण, विज्ञान तथा मानविकी विषयक पत्रिकाओं का प्रकाशन, हिंदी अधिकारियों के लिए विशिष्ट शब्दावली प्रशिक्षण तथा कंप्यूटर • आधारित राष्ट्रीय शब्दावली बैंक की स्थापना तथा इन्हें इलेक्ट्रॉनिक फॉरमेट में ले जाना आदि

ज्ञातव्य है कि उन विषयों और व्यवहार क्षेत्रों में जहाँ हिंदी माध्यम के रूप में प्रयुक्त है, में आयोग की शब्दावली का समुचित क्षेत्र परीक्षण हो रहा है। पर्याप्त संख्या में आयोग के शब्द स्वीकृत हो चुके हैं। कुछ तकनीकी शब्दों के दो या दो से अधिक पर्याय प्रचलन में मिलते हैं, लेकिन प्रयोग विस्तार के साथ-साथ धीरे-धीरे वहाँ भी मुख्यतः आयोग के पर्यायों का प्रचलन शुरू हो गया है। कुछ तकनीकी शब्द ऐसे भी हैं जिनके लिए पत्र-पत्रिकाओं या पुस्तकों में आयोग के पर्यायों से भिन्न पर्याय प्रचलन में आ गए हैं। ऐसी स्थिति में आयोग जहाँ आवश्यक होता है प्रचलित रूप को स्वीकार कर अपने डाटाबेस में संशोधन कर लेता है। ऐसे विषयों या व्यवहार क्षेत्रों में जहाँ अभी तक हिंदी या भारतीय भाषाएँ माध्यम नहीं बन पाई हैं, आयोग द्वारा विकसित तकनीकी शब्दावली का उचित प्रयोग परीक्षण नहीं हो पाया है इसलिए इसकी सामाजिक स्वीकार्यता के बारे में अंतिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

अनुभव बताता है कि बहुपर्यायता भारत जैसे बहुभाषी देश की एक विशेषता है जहाँ एक ही तकनीकी शब्द के लिए दो या दो से अधिक प्रतिद्वंद्वी पर्याय सामाजिक स्वीकृति के लिए एक दूसरे से होड़ ले रहे हैं। बहुपर्यायता हमेशा बहुभाषिता का परिणाम नहीं होती। कभी-कभी । संप्रेषण की विद्या की विशिष्ट जरूरतें भी बहुपर्यायता का कारण बन जाती हैं। दूसरे शब्दों में, संप्रेषण मौखिक है या लिखित अथवा रौर-तकनीकी है या तकनीकी, इससे भी पर्यायों के विकल्पों में अंतर हो जाता है। फलस्वरूप भाषा में कई तकनीकी शब्दों के दो या दो से अधिक रूप प्रचलित हो जाते हैं। इसके अलावा बहुपर्यायता के कई अन्य कारण भी हैं, जैसे : भाषा में मानकीकरण का अभाव, व्यवसायगत शब्दावली की प्रयोग परंपरा का अभाव तथा भाषा में शब्द निर्माण और अनुवाद का सक्रिय प्रयास जिन तकनीकी शब्दों के लिए एक से अधिक तकनीकी पर्याय प्रचलन में हैं, उनमें से एक पर्याय अक्सर बोलचाल की भाषा का शब्द होता है जिसका मुख्य गुण इसकी सरलता या सहज बोधगम्यता होता है। दूसरा पर्याय सामान्यतः अधिक तकनीकी होता है, जिसका मुख्य गुण इसकी सटीकता और अर्थभेदकता होता है। दूसरे शब्दों में मौखिक संप्रेषण के लिए जिस प्रकार की तकनीकी शब्दावली की आवश्यकता पड़ती है, वह लिखित संप्रेषण की शब्दावली से अंशत: भिन्न हो सकती है। मौखिक संप्रेषण में शुद्ध तकनीकी शब्दावली की बजाय सरल लोकप्रिय शब्दावली का अधिक प्रयोग होता है, जबकि लिखित संप्रेषण में सरलीकृत तथा लोकप्रिय शब्दावली की बजाय सूक्ष्मदर्शी और विषयसंगत शुद्ध तकनीकी शब्दावली के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाती है। लिखित संप्रेषण के स्तर पर भी लोकप्रिय ज्ञान-विज्ञान साहित्य का लेखक ऐसी शब्दावली को प्राथमिकता देगा जिसे आम आदमी आसानी से समझ जाए, भले ही उसमें सटीक अर्थ या शब्दावली की बारीकियों का अभाव हो। इसके विपरीत, शोधपत्र, पाठ्य पुस्तक या संदर्भ साहित्य का लेखक ऐसी शब्दावली प्रयोग करना पसंद करेगा जो तकनीकी दृष्टि से पूर्णतः विषयसंगत, सटीक और अर्थ की सूक्ष्मताओं को उद्भाषित करने वाली हों, क्योंकि उसका पाठक आम आदमी नहीं बल्कि विशेषज्ञ या विषय का जानकर व्यक्ति है।

आयोग का यह प्रयास रहा है कि जहाँ तक संभव हो एक तकनीकी शब्द या संकल्पना के लिए एक ही मानक पर्याय निर्धारित किया जाए, शिथिल, द्विअर्थी या भ्रामक पर्यायों को भले ही वे आम बोलचाल के हों, हटाकर पर्याय विकल्पों के दायरे को कम किया जाए। स्मरण रहे कि यह व्यवस्था तकनीकी संदर्भों की भाषा के लिए है, आम प्रयोग की प्रचारक भाषा के लिए नहीं, जहाँ संदर्भ या जरूरत के अनुसार पर्याय विकल्पों का दायरा बढ़ा रहता है। जहाँ भाषा आयोग ने एक से अधिक पर्यायों का निर्धारण किया है वे भिन्न-भिन्न अर्थ छायाओं या संकल्पनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसी स्थिति में प्रयोक्ता को अपने विवेक से यह निर्णय करना होगा कि उपलब्ध पर्याय विकल्पों में से किस विकल्प का प्रयोग किस संदर्भ में और किस सेवा में उपयुक्त है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित पर्याय विकल्पों का प्रयोग संदर्भ आश्रित है 

cosmic - विराट, विश्व, सृष्टि, सृष्ट्यात्मक, ब्रह्मांड,   सार्वभौम । 

image - प्रतिमा, बिंब, प्रतिकृति, मूर्ति, छवि। sanction - स्वीकृति, संस्वीकृति, मंजूरी।


समानार्थकता की समस्या 

सभी तकनीकी शब्दों की कुछ समान विशेषताएँ होती हैं। तकनीकी शब्दों का अर्थ सुनिश्चित, सटीक और सार्वभौम होता है। इनका अर्थ विस्तारित होने की बजाय सूक्ष्मतर होता जाता है। ये प्रायः पारदर्शी या स्वतः व्याख्यात नहीं होते, बल्कि अपारदर्शी या गृह्य होते हैं। वस्तुतः ये शब्द जितने ही गृह्य और अपारदर्शी होंगे, उतने ही वे तकनीकी और गूढ़ार्थी होंगे। इनका अर्थ उन विषयों या व्यवहार क्षेत्रों में निहित रहता है जिनके ये तकनीकी शब्द होते हैं। तकनीकी शब्द अपने में न सरल होते हैं, न कठिन-ये केवल परिचित होते हैं या अपरिचित । इनके अर्थ स्वतः प्रकट नहीं होते, बल्कि सतत अभ्यास या परिचय से ही इनका अर्थबोध होता है। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि जो तकनीकी शब्द अपनी संकल्पनाओं के साथ-साथ विकसित होते हैं उनका भविष्य उन पर्यायों से भिन्न होता है जो किसी मध्यस्थ शब्दावली के अनुवाद के रूप में निर्मित होते हैं। पर्याय शब्द में भी यह भाव निहित है कि यह किसी संकल्पना से सीधे जुड़कर नहीं बना है, बल्कि किसी और भाषा के ऐसे शब्द से जुड़कर बना है जो वस्तुतः मूल संकल्पना पर आधारित है। अतः मूलतः संकल्पना से जुड़े तकनीकी शब्द की निर्माण प्रक्रिया की तुलना में, पर्याय निर्माण की प्रक्रिया की कुछ अतिरिक्त सीमाएँ होती। हैं। भारतीय परिवेश में ये सीमाएँ इस प्रकार थीं:-

               क ) भारतीय पाठक अंग्रेज़ी तकनीकी शब्दों से पहले से परिचित था या उनके प्रयोग का आदी हो गया था भले ही अंग्रेजी भाषा व्यवस्था पर उसका अधिकार अपूर्ण था । अतः उसके पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखते हुए काफी बड़ी संख्या में अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्दों को यथावत ग्रहण कर लेने की परवशता थी।

                ख) अपनी मातृभाषा की व्याकरणिक पद्धति पर भारतीय प्रयोक्ता का अधिकार संतोषजनक हो सकता था लेकिन अपनी भाषा का तकनीकी और व्यावसायिक शब्द-संपदा का उसका ज्ञान या परिचय बहुत कम था। शब्द-ज्ञान की इस सीमा के कारण पर्यायों के लिए केवल ऐसे सरल शब्दों को ही ढूँढने का प्रयास करना पड़ा जो प्रयोक्ता की जानकारी के दायरे में हों, लेकिन गूढ़ तकनीकी अर्थों की अभिव्यक्ति के लिए ऐसे परिचित शब्द हमेशा सुलभ नहीं हो सकते थे।

               ग) तकनीकी पर्याय के रूप में चयन किए गए शब्द से यह भाषा वैज्ञानिक अपेक्षा रहती है कि उसमें इतनी उर्वरक शक्ति हो तो उससे भाषा की मान्य व्याकरणिक पद्धति के अंतर्गत अधिक से अधिक व्युत्पन्न शब्द और शब्द-संयुतियों बनाई जा सकें।

               घ) पर्यायों के चयन में यह ध्यान रखा जाना जरूरी था कि इनका स्वरूप यथासंभव अखिल भारतीय हो जिससे राष्ट्रीय एकता का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। इससे संस्कृत से आए शब्दों को प्राथमिकता देना आवश्यक हो गया क्योंकि अधिकांश भारतीय भाषाओं की स्रोत भाषा संस्कृत ही है।

आयोग ने पाया कि कई बार शब्द की उर्वरकता या उसके अखिल भारतीय स्वरूप का गुण सरलता के गुण के विरोध में जा रहा है। उदाहरण के लिए, 'कानून' और 'हवाई जहाज़' जैसे के सरल लोकप्रिय शब्द तकनीकी अभिव्यक्तियों में 'विधि' और 'विमान' जैसे संस्कृत आधार शब्दों की तुलना में पिछड़ गए। इसका एकमात्र कारण यह था कि 'विधि' और 'विमान' जैसे शब्द अखिल भारतीय थे और शब्दों की पूरी श्रृंखला व्युत्पन्न करने में समर्थ थे जबकि 'कानून' और 'हवाई जहाज़', शब्दों के साथ यह सुविधा नहीं थी। देखिए ::

accept (मानना) स्वीकार करना - स्वीकृति, स्वीकार्य, स्वीकार्यता, स्वीकरण । 

law (कानून) विधि - वैध, वैधता, अवैध, विधान, विधायी, विधायक ।

aeroplane ( हवाई जहाज ) विमान - वैमानिक, विमानीय, विमान चालन ।

cooling (ठंडा) शीतल -शीतन, प्रशीतन द्रुतशीतन मज्जशीतन ।

किसी भी तकनीकी पर्याय का निर्धारण बिना संदर्भ के नहीं हो सकता। पर्याय का निर्धारण करते समय यह देखना जरूरी होता है कि शब्द किस संदर्भ में प्रयुक्त हो रहा है, और उसकी अन्य सजातीय संकल्पनाएँ, जिनका यह शब्द केवल एक अंश है, क्या हैं ताकि अन्य सजातीय शब्दों द्वारा व्यक्त अर्थों की बारीकियों के बीच भेद बनाए रखा जा सके। उदाहरण के लिए, 'competence' शब्द के लिए पर्याय निर्धारित करते समय आयोग को सूक्ष्म अर्थ भेद बनाए रखने के उद्देश्य से efficiency, capacity और proficiency जैसे सजातीय शब्दों के लिए भी एक साथ पर्याय निर्धारित करने की आवश्यकता पड़ी। देखिए :- 

( A )     efficiency - दक्षता, कुशलता

competence - क्षमता, सक्षमता

capacity - क्षमता, सामर्थ्य, धारिता

proficiency - प्रवीणता

(B)    emoluments  - परिलब्धियाँ

perquisites  - अनुलब्धियाँ

(C)    aptitude - अभिक्षमता

(D)    postponement - स्थगन

deferment - आस्थगन 

 (in) abeyance - प्रास्थगन 

 (E)   rule - नियम

regulation - विनियम

act - अधिनियम

interest - अभिरुचि

proneness - प्रवणता

tendency - प्रवृत्ति 

 सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों की तकनीकी शब्दावली के पर्याय निर्माण की समस्याएँ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषयों की तकनीकी शब्दावली के पर्याय निर्माण की समस्याओं से एक अर्थ में भिन्न है। विज्ञान में 'एक शब्द एक अर्थ' के सिद्धांत्त का पालन सामाजिक विज्ञानों की तुलना में अधिक सख्ती से होता है। विज्ञान में गूढ़ तकनीकी शब्दावली की बहुलता होती है जो गणितीय बारीकी और सूक्ष्मता की अपेक्षा करती है और इसलिए एक बार एक शब्द या पर्याय निश्चित कर देने के बाद विज्ञान की सभी शाखाओं में उसका उसी अर्थ में प्रयोग होता है, जैसे :- 

energy - ऊर्जा

radiation - विकिरण

satellite - उपग्रह

charge - आवेश, चार्ज 

दूसरी ओर, सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों में बहुप्रयोजनी तकनीकी शब्दों की बहुलता रहती है और सभी बहुप्रयोजनी शब्दों की तरह इनका प्रयोग विभिन्न सामाजिक विज्ञान विषयों में विभिन्न प्रयोक्ताओं द्वारा विभिन्न प्रयोजनों या संदर्भों में एक से अधिक अर्थ व्यक्त करता है। फलस्वरूप भारतीय भाषाओं में कई बार एक ही अंग्रेज़ी तकनीकी शब्द के लिए उनके सभी अर्थों को व्यक्त करने के लिए एक से अधिक पर्यायों की व्यवस्था करनी पड़ती है, जैसे: 

charge -  (adm) कार्यभार, (acc) व्यय (com) उधार (pol sc) धावा (law) आरोप 

Post - (adm) पद, चौकी, (arch) स्तंभ, (commun) डाक  

balance - (com) संतुलन, बाकी, शेष, अतिशेष, तराजू, तुला (fine arts) जवाब 

Credit - (com/eco) साख, उधार, ऋण, जमा, क्रेडिट (edu) गण्यता, श्रेय (lit crit)आभार

Quality - (com) गुण, गुणता, कोटि, किस्म, प्रकार (ling) गुणवत्ता, (lit crit) विशेषता (music) ध्वनिगुणता

शब्दावली निर्माण प्रक्रिया

एक बार तकनीकी शब्दावली निर्माण के मूलभूत सिद्धांतों का निर्धारण कर लेने के बाद आयोग ने भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्द-भंडार का निर्माण करने के लिए निम्नलिखित भाषिक युक्तियों का अनुसरण किया :-

( क ) परंपरा से प्राप्त शब्दावली :- 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तकनीकी शब्दावली से भिन्न सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों की शब्दावली की भारत में दीर्घ परंपरा रही है। विशेष रूप से, दर्शन, सौंदर्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, भाषाविज्ञान और साहित्यिक समालोचना की शब्दावली हमें संस्कृत से विरासत में मिली है जो हमारी भाषा के तत्सम और तद्भव शब्द संपदा का अंग है। जहाँ एक ओर इस शब्दावली ने कारोबार की एक बहुत बड़ी समस्या को हल किया, वहीं दूसरी ओर इसने एक और प्रकार की समस्या भी पैदा कर दी। कई प्रचलित तकनीकी शब्द अंग्रेज़ी शब्द द्वारा व्यक्त समग्र अर्थभेदों या सम्पूर्ण संकल्पना का एक अंश ही व्यक्त कर पाते हैं संपूर्ण नहीं। उदाहरण के लिए, संस्कृत परंपरा के व्याकरणिक शब्द 'पद' और 'प्रतिपदिक' अंग्रेजी शब्द term और stem का आधा ही अर्थ व्यक्त करते हैं, पूरा नहीं जिन विषयों में आज ज्ञान का विकास बहुत तेजी से हो रहा है, उनमें यह समस्या और अधिक प्रखर रूप से सामने आ रही है क्योंकि उनके अनेक तकनीकी शब्दों में नए अर्थ और नई अर्थ छायाएँ आरोपित हो रही हैं। ऐसी स्थिति में आयोग ने दो विकल्प अपनाए या तो परंपरा से प्राप्त शब्द के स्थान पर कोई पूर्णतः नया शब्द दे दिया गया या फिर विभिन्न संदर्भों या अर्थ छायाओं के लिए एक से अधिक पर्यायों का निर्धारण किया गया।

इसी प्रकार प्रशासन विधि, राजस्व, राजनीति विज्ञान, पुरातत्व और वाणिज्य की शब्दावली का एक बहुत बड़ा हिस्सा अरबी-फारसी शब्द-भंडार से प्राप्त हुआ है जो मुगल काल के दौरान शासन की भाषा थी। सामाजिक और भाषिक एकीकरण की प्रक्रिया में यह शब्द-संपदा कालांतर में भारतीय भाषाओं में आत्मसात हो गई। उत्तर भारत में जहाँ अरबी-फारसी शब्दावली का प्रभाव सबसे अधिक रहा, इसने एक नई भाषा शैली हिंदुस्तानी को जन्म दिया जिससे व्यावसायिक लेन-देन और कारोबार में वास्तव में प्रयुक्त हो रहे पर्यायों का भंडार हमें प्राप्त हुआ जैसे :

advance पेशगी
awning सायबान
compensation मुआवजा
daybook रोजनामचा
document दस्तावेज़
excise आबकारी
forfeiture ज़ब्ती
identification शिनाख़्त
spear नेज़ा
sum रकम
subsidy इमदाद
tenant काश्तकार 

 परंपरा से प्राप्त शब्दावली का एक और प्रमुख स्रोत था क्षेत्रीय भाषाएँ जिनमें कई कुछ खास तरह के व्यवसाय में 'व्यवहार' में आने वाली शब्दावली की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध थीं, जैसे समुद्र तट के आसपास बोली जाने वाली भाषाओं और बोलियों में समुद्र विज्ञान या मछली पालन से संबंधित शब्दावली की बहुलता थी। संविधान के अनुच्छेद 351 में यह भी प्रावधान है कि हिंदी को भारतीय भाषाओं की शब्द-संपदा को आत्मसात् करना चाहिए जिससे यह सामासिक 'भारतीय संस्कृति' की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। फलस्वरूप कई अंग्रेजी शब्दों के लिए भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण किए गए, जैसे :

amateur - औत्साहिक /(Telugu)

blighted area - झोपड़ पट्टी/(Marathi)

elastic - लवचिक/ (Marathi)
idiom - जातीयम् / (Telugu)
greenroom - साजगृह/ (Bengali)
impersonation - रूपारोप/ (Bengali)
bond labour - गोती/ (Oriya)
 minor coin - चिल्लर /(Malayalam, Tamil)

(ख) आगत शब्द :  

आयोग द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार (वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के स्थायी आयोग द्वारा स्वीकृत शब्दावली निर्माण के सिद्धांत) सभी अंतर्राष्ट्रीय शब्द भारतीय भाषाओं में ग्रहण कर लिए गए, जैसे (1)व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के आधार पर बने शब्द, 
(2)द्विपदी नामावली तथा ऐसे शब्द जो भारतीय भाषाओं में रच-पच गए हैं। ऐसे शब्दों को सामान्यतः मूल अंग्रेजी रूप में ग्रहण किया गया लेकिन कुछ शब्दों को भाषा की प्रकृति के अनुसार अनुकूलित कर दिया गया, 
(3)कुछ शब्द अंग्रेज़ी-हिंदी के संकर रूप में भी रखे गए हैं। 
मूलरूप में रखे गए शब्द जैसे- गिलोटिन, गेरीमँडर, बॉयकाट, सिगनल, 
अनुकूलित कर लिए शब्द, जैसे- अकादमी, तकनीक, अंतरिम, क्लासिकी और 
संकर रूप में रखे गए शब्द 
जैसे :- शेयरधारक, रजिस्ट्रीकृत, कोडीकरण, अपीलकर्ता।

(ग) नए शब्दों का सृजन: 

जहाँ अंग्रेजी तकनीकी शब्दों के लिए अन्य युक्तियों से प्रचलित हिंदी पर्याय उपलब्ध नहीं थे, वहाँ नए शब्दों का सृजन करने की आवश्यकता पड़ी। इसकेे लिए तीन युक्तियों का सहारा लिया गया :

( 1 ) प्रचलन से हट चुके शब्दों को नया अर्थ प्रदान कर उन्हें पुनर्जीवित किया गया। इस प्रक्रिया में उन शब्दों के प्राचीन या अर्थ को पूर्णतः हटा कर उनसे भिन्न लेकिन मिलते-जुलते अर्थों का उन शब्दों में आरोप किया गया, जैसे संसद, जनगणना, टिप्पणी |

( 2 ) पूर्व प्रचलित कुछ शब्दों को अतिरिक्त अर्थ प्रदान कर उनके अर्थों का विस्तार किया गया। इस प्रक्रिया में ये शब्द संदर्भ के अनुसार दो या अधिक अर्थ व्यक्त करते हैं, जिनमें परंपरागत अर्थ तथा नए अर्थ दोनों शामिल हैं। जैसे बिजली, ऊर्जा, वेग, संस्तुति ।

( 3 ) कभी-कभी सामान्यत: संस्कृत धातुओं, प्रत्ययों और उपसर्गों के आधार पर पूर्णत: नए शब्दों का सृजन कर आवश्यक पर्याय बनाए गए, जैसे, संकाय, राजपत्रित अभियंता, परिवीक्षा, प्रायोजना।

(घ) अनुवाद पर्याय: 

किसी भी भाषा में पर्याय का निर्माण करने के लिए अनुवाद युक्ति का सहारा लिया जाता है, लेकिन अनुवाद के आधार पर दो शब्दों के बीच अर्थसाम्य स्थापित करने के मोटे रूप से दो तरीके है भावानुवाद और शब्दानुवाद । सामान्यतः आयोग का यह प्रय रहा है कि शब्दार्थ के बजाय भावार्थ का अनुवाद किया जाए, जैसे :-

atomic language - मूलज भाषा

amorous bite - विषकन्यादंश

outstation cheque - बाहरी चैक

philosophical - मानव मीमांसा

 reduplication अभ्यास

least effort प्रयत्नलाघव

obstetrics  प्रसूति

cacuminal मुर्धन्य 

 अंग्रेज़ी के कुछ तकनीकी शब्द, जो विशिष्ट पाश्चात्य संकल्पनाओं का प्रतिनिधित्व थे, अर्थ की दृष्टि से इतने पारदर्शी और स्टीक थे कि उनका सीधा शाब्दिक अनुवाद करना ही उचित प्रतीत हुआ। कहना न होगा इस प्रकार बने पर्याय भारतीय भाषाओं के शब्द-भंडार को भी समृद्ध करते हैं। देखिए -

green revolution हरित क्रांति

fifth columnist पंचमांगी

leftist वामपंथी

rightist दक्षिणपंथी 

blackmoney काला धन

above the line रेखोपरि

red-tapism लालफीताशाही 

कोई भी नया शब्द चाहे वह व्याकरण और अर्थ की दृष्टि से कितना ही उत्कृष्ट और सटीक क्यों न हो तब तक सार्थक नहीं होता जब तक वह प्रचलन में नहीं आ जाता। इस मत से किसी को विरोध नहीं कि नए शब्दों को अपनी प्राकृतिक विकास प्रक्रिया में पल्लवित होने दिया जाना चाहिए, लेकिन यह तर्क भी अकाट्य है कि भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ समस्त आधुनिक ज्ञान पश्चिम से प्राप्त है, उपर्युक्त रीति से सप्रयास नए शब्दों के प्रयोग-प्रसार को बढ़ावा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं किसी भी शब्द की सामाजिक मान्यता अंततोगत्वा इस बात पर निर्भर करती है कि विभिन्न संचार माध्यमों (इलेक्ट्रॉनिक मुद्रित या मौखिक) से वह शब्द कहाँ तक प्रयोक्ताओं तक पहुँच पाता है। भाषा प्रयोग के उन क्षेत्रों में जहाँ माध्यम परिवर्तन हो चुका है, नई शब्दावली का प्रयोग व प्रसार अधिक सरल हो जाता है, जैसे सामाजिक विज्ञानों के विषय इसके विपरीत जहाँ भारतीय भाषाओं को माध्यम भाषा बनने का अवसर नहीं मिला है वहाँ नए शब्दों को प्रयोक्ताओं के सम्पर्क में लाने में कठिनाई होती है, जैसे इंजीनियरी और आयुर्विज्ञान आदि ।

मनोविज्ञान एवं व्यक्ति का संबंध उतना ही गहन एवं प्राचीन है जितनी की स्वयं मानव जाति । समय के साथ जैसे-जैसे ज्ञान और बुद्धि का विकास हुआ, मनोविज्ञान का क्षेत्र भी व्यापक एवं तंत्रबद्ध होता चला गया और यह व्यक्ति के विकास की विभिन्न अवस्थाओं एवं उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं के अनुरूप अनेक शाखाओं में विभक्त हो गया, 

जैसे- बाल्यावस्था, किशोरावस्था से संबंधित मनोविज्ञान, सामान्य एवं अपसामान्य मनोविज्ञान, समाज मनोविज्ञान, शिक्षा मनोविज्ञान आदि। इन सभी शाखाओं से संबंधित तकनीकी संकल्पनाएँ आयोग द्वारा प्रकाशित 'बृहत् परिभाषिक शब्द संग्रह' (मानविकी सामाजिक विज्ञान), भाग-1 तथा II में संग्रहीत हैं।

प्रस्तुत अद्यतनीकृत मनोविज्ञान शब्दावली, शब्दावली के विकास एवं उसके अद्यतनीकरण की श्रृंखला में एक और कड़ी है। इसमें मनोविज्ञान के क्षेत्र में कुछ नव विकसित शाखाओं, यथाः पर्यावरण मनोविज्ञान, औद्योगिक इंजीनियरी मनोविज्ञान, परिवार मनोविज्ञान के अतिरिक्त नैदानिक, दैहिक मनोविज्ञान, मनोवैज्ञानिक शोध विधि एवं मनोमिति तथा उपरोक्त शाखाओं की कुछ और नव विकसित संकल्पनाओं को समाविष्ट किया गया है।

शब्दावली आयोग राष्ट्रपति के आदेश के तहत सभी विषयों में (विधि को छोड़कर) तकनीकी शब्दों को अनुमोदित तथा मानकीकृत करने की एक केंद्रीय संस्था है। इस प्रयास में देश भर के विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों आदि के शीर्षस्थ वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों, विषय-विशेषज्ञों और भाषाविदों का बहुमूल्य योगदान रहा है जिन्होंने आयोग की विभिन्न विषयों की विशेषज्ञ सलाहकार समितियों के माध्यम से समस्त शब्दावली को अनुमोदित किया। 

"हिंदी की बिंदी" शुद्ध व्याकरणिक प्रयोग कैसे करें, बहुत ही पसंदीदा/जिज्ञासु तथ्य जाने/"hindee kee bindi".

आभार!

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