"हिंदी की बिंदी" शुद्ध व्याकरणिक प्रयोग कैसे करें, बहुत ही पसंदीदा/जिज्ञासु तथ्य जाने/"Hindi ki bindi" pasandeeda/jigyaasu tathy.
"हिंदी की बिंदी"
अनुस्वार,चंद्रबिंदु ,
आगत स्वर-व्यंजन(ॉ/क़/ख़/ग़/ज़/फ़),
द्वित्व/उत्क्षिप्त(ड़/ढ़) ध्वनि,
विसर्ग ( : ) क वर्ग का (ङ्)
अनुनासिकता :-
👉तो फिर ये क्या हैं?
1.आगत स्वर-
हिंदी में अनेक शब्द अंग्रेजी से तथा अनेक योरोपीय भाषाओं से आ गए हैं। इन शब्दों के साथ एक ऐसी स्वर ध्वनि भी आ गई है जो पहले से हिंदी में नहीं थी। इसके लिए हिंदी में नया वर्ण भी बना लिया गया है। इस ध्वनि के उच्चारण को समझने के लिए अंग्रेजी के निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण कीजिए
doctor coffee, shop, ball आदि।
इन शब्दों के उच्चारण करते - समय ज्ञात होगा कि इन शब्दों में आने वाला स्वर न तो हिंदी का 'ओ' स्वर है और न ही 'औ' स्वर । वस्तुतः इसका उच्चारण इन दोनों के मध्य में पड़ता है। इसके लिए 'आ' स्वर के ऊपर चंद्राकार चिह्न लगाकर 'ऑ'वर्ण बनाया गया है तथा इसका मात्रा चिह्न है 👉ॉ
ऊपर दिए गए अंग्रेजी के शब्दों का लेखन इस प्रकार किया जाएगा डॉक्टर, कॉफ़ी, शॉप, बॉल आदि।
2.नव विकसित स्वर - 1-'अनुनासिक'
- 'अनुनासिक' एक आश्रित नासिक्यीकृत स्वर ध्वनि है।
- नासिक्यीकृत स्वर वे स्वर हैं जिनके उच्चारण में वायु मुख और नासिका दोनों मार्गों से बाहर निकलती है। संस्कृत में सभी स्वर मौखिक थे अर्थात् इनके उच्चारण में वायु केवल मुख से ही बाहर निकलती थी। हिंदी में आकर मौखिक स्वरों के साथ साथ नासिक्यीकृत स्वरों या अनुनासिकों का भी विकास हो गया।
- सभी अनुनासिकों में अर्थ विभेदक क्षमता होती है अर्थात् ये मौखिक स्वरों के व्यतिरेक में शब्द का अर्थ बदल सकते हैं, जैसे :
भाग-भाँग, सास - साँस, गोद - गोंद, सवार - सँवार, है - हैं। आदि।
अत: जिन स्वरों के उच्चारण में वायु मुख के साथ-साथ तथा नासिका मार्ग का अनुगमन करने लगती है या नासिका मार्ग से बाहर निकलती है वे स्वर 'अनुनासिक' कहे जाते हैं।
अनुनासिक स्वरों का लेखन
सभी स्वरों और उनकी मात्राओं के वर्ण तो हिंदी को संस्कृत से ही मिले थे; आवश्यकता इस बात की थी कि अनुनासिक के लिए भी वर्ण बनाए जाएँ। अनुनासिक स्वरों को लिखकर व्यक्त करने के लिए दो चिह्न (वर्ण) बनाए गए हैं
चंद्रबिंदु (आँ ) तथा बिंदु (अं)|
चंद्रबिंदु-
अँ = अँगूठा, अँगोछा, गँवार, हँसीआँ = आँधी, आँसू, आँवला,काँच, भाँगइ (मात्रा के ऊपर चंद्रबिंदु) = सिंघाड़ा, हिंडोला, खिंचनाईं = ईंट, ईंधन, झींगुरउँ = उँगली, मुँह, धुँधला,ऊँ = ऊँचा, गूँज, कूँची, पूँछए = (मात्रा के ऊपर चंद्रबिंदु) भेंट, गेंद, केंचुआऐ = मैं, भैंस, हैंओ = होंठ, गोंद, झोंपड़ीऔ = चौंसठ, धौंस भौंकना
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि भोंकना का भोङ्कना उच्चारण नहीं होता ; गोंद का गोण्द नहीं होता; ईंधन का ईन्धन नहीं होता तो फिर इसके साथ अनुस्वार की कल्पना करना बेकार है।
अनुस्वार (अं) :-
- जहाँ अनुनासिक(चंद्रबिंदु) एक आश्रित नासिक्य-स्वर है, वहीं अनुस्वार एक आश्रित नासिक्य व्यंजन है। नासिक्य व्यंजन होने के कारण इसके उच्चारण में भी वायु मुख और नासिका दोनों मार्गों से बाहर निकलती है तथा मुख में किसी न किसी स्थान पर अवरोध उत्पन्न होता है।
- हिंदी में अनुस्वार' या तो शब्द के मध्य में आता है या शब्द के अंत में तथा इसका अपना कोई निर्धारित उच्चारण नहीं होता।
- शब्द के मध्य में इसका उच्चारण उस व्यंजन पर निर्भर करता है जो इसके बाद में (following consonant) आता है।
- 'क' वर्ग के व्यंजनों के पहले अनुस्वार का उच्चारण (क-वर्ग' के नासिक्य) 'ड्.' के रूप में होता है
- च-वर्ग के व्यंजनों के पहले ('च-वर्ग' के नासिक्य) 'ञ' के रूप होता है।
- ट-वर्ग के व्यंजनों के पहले ('ट-वर्ग' के नासिक्य) 'ण' के रूप में होता है
- त-वर्ग के व्यंजनों के पहले ('त-वर्ग' के नासिक्य) 'न' के रूप में होता है।
- प-वर्ग के व्यंजनों के पहले ('प-वर्ग' के नासिक्य) 'म्' के रूप में होता है।
गञ्गा - गंगा, पङ्कज - पंकजकञ्चन - कंचन, पञ्जाब - पंजाबकण्टक - कंटक, हिन्दी - हिंदीचंपा - चम्पा,पण्डित-पंडितशान्त-शांत,अम्बा-अंबा
संयम ( सञ्यम) = य के पूर्व 'ञ' के रूप मेंसंरचना (सन् रचना) = र के पूर्व 'न' के रूप मेंसंलाप (सन्लाप) = ल के पूर्व 'न' के रूप मेंसंवाद (सम्वाद) = व के पूर्व 'म' के रूप मेंसंशय (सञ्शय) = श के पूर्व 'ञ' के रूप मेंसंसार ( सन्सार ) = स के पूर्व 'न' के रूप मेंसंहार (सड़हार ) = ह के पूर्व 'म' के रूप में
अहं (अहम् ), स्वयं (स्वयम्) एवं (एवम्) आदि।
(आं) = भांजा, कांड,
(ई) = इंदु, हिंदी,
(उं) = गुंजन, सुंदर,
(एं) = केंद्र, पेंट
(ऐं) = पैंट, सैंट,
(ओं) = पोंगल, ओंकार,
(औं) = सौंदर्य, कौंतेय आदि।
विसर्ग अ: -
स्वतः, अतः प्रायः आदि परंतु इनका उच्चारण क्रमश: 'स्वतह', 'अतह', 'प्रायह' आदि के रूप में ही किया जाता है। इससे बचना चाहिए।
अतः ध्यान रखिए विसर्ग एक व्यंजन ध्वनि है जिसका हिंदी में उच्चारण सामान्यतः 'ह' की तरह होता है और उसका चिह्न है- [:]
हिंदी में विसर्ग से संबंधित विश्लेषण को पढ़ें।
आगत व्यंजन तथा उनके वर्ण :-
आगत व्यंजन :
हिंदी में दो व्यंजन ध्वनियाँ अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी तथा अनेक योरोपियन भाषाओं के शब्दों के आ जाने के कारण आ गई हैं। इनके लिए देवनागरी लिपि में पहले से मौजूद वर्णों के नीचे 'बिंदु' या 'नुक्ता' लगाकर नए चिह्न बना लिए गए हैं।
ये आगत व्यंजन हैं: ज़ तथा फ़।
इन ध्वनियों से बनने वाले शब्दों के सही उच्चारण को सुनकर इनको सही लिखने का अभ्यास करें तथा इनसे मिलती-जुलती ध्वनियाँ ज तथा फ से इनके अंतर को सुनकर पहचानना सीखें। नीचे इनके अंतर को स्पष्ट करने वाले कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं -
परंपरागत(संस्कृत) वर्णों से बनने वाले शब्द
सजा - (सजाना)
जरा - (बुढ़ापा)
फन - (साँप का)
फूल - (पुष्प)
नव विकसित वर्णों से बनने वाले शब्द
सज़ा - (दंड)ज़रा - (थोड़ा)फ़न - (हुनर )फ़ूल - (मूर्ख, अंग्रेजी का)
"हिंदी की बिंदी" के अन्य रूप -
नव विकसित व्यंजन- ड़ तथा ढ़
जिस तरह से हिंदी में अनुनासिकों का विकास हुआ, इसी तरह दो ऐसे नए व्यंजनों का भी विकास हुआ जो संस्कृत में नहीं थे।
ये व्यंजन हैं 'ड़' तथा 'ढ़'।
वस्तुतः ये दोनों (उत्क्षिप्त) मूर्धन्य व्यंजन 'ड' तथा 'ढ' से विकसित हुए हैं, संस्कृत में 'ड/ढ' व्यंजनों का प्रयोग शब्द के आरंभ, मध्य तथा अंत तीनों स्थानों में होता था लेकिन हिंदी में इनका प्रयोग शब्द के आरंभ में ही रह गया। शब्द के मध्य तथा शब्दांत में (दो स्वरों के मध्य) 'ड' का उच्चारण 'ड़' तथा 'ढ' का उच्चारण 'ढ़' हो गया, जैसे :
शब्दारंभ में 'ड' =
डमरु, डलिया, डर, डाल, डेरा, डोंगा आदि।
शब्द के मध्य तथा शब्दांत में 'ड़/ ढ़' =
लड़का, लकड़ी लड़की ककड़ी, घोड़ी, मोड़, जोड़,पेड़
(उपर्युक्त दोनों स्वर नहीं; स्वरों के नासिक्य विकार से उत्पन्न ध्वनि है।)
1. आश्रित व्यंजन (dependant consonants) [अं] अनुस्वार।
2. लुप्त व्यंजन [अ:] विसर्ग
(व्यंजन वर्ण का नासिक्य रूप)
स्वतः, अतः प्रायः
जबकि कॉलन चिह्न का प्रयोग 2 शब्दों की तुलना करने; किसी सारणी विवरण सूची आदि को निर्देशित करने के लिए कोलन चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे -
उत्कर्ष : अपकर्ष
उत्तम : अधम
ङ्/ड/ड़/ड /डॉ/ड्/ -
वाङ् मय
2 ड का प्रयोग
डमरु ,डर, डल झील
3 ड़ का प्रयोग
सड़क कड़क पकड़
4 ड़ का प्रयोग
गंडा ,डंका, डंक
5 डाॅ का प्रयोग शुद्ध उच्चारण सहित इन सभी वर्णों के उच्चारण का समाधान।
डॉक्टर ,डाॅलर, डाॅउनलोड , डॉक ,डॉट
6 चंद्रबिंदु के साथ 'ड' का प्रयोग
डॉंवाडोल (तकनीकी कारण से लिखने में कठिनाई)
'उड़ान मन की' 'सोच का सृजन' 'मृगतृष्णा की दुनिया' 'नारी' 5 लिंकों का आनंद'
जवाब देंहटाएंरचनाएं बहुत अच्छी लगी।
धन्यवाद 🙏🙏🙏